जानिए हमें पुरुषत्व को फिर से परिभाषित करने की आवश्यकता क्यों है बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ का नारा बहुत आम है। हम सभी ने इसके बारे में सुना है, लेकिन अब ‘ बेटो को समझाओ ” का प्रचार करने का समय है। अगर लड़कों की परवरिश सही तरीके से होती है, तो हमें अब अपनी लड़कियों को नहीं बचाना होगा। इसके बजाय, हमें इसे अपने बेटों से पूछताछ करने की आदत डालनी चाहिए, जब वे देर रात को लौटते हैं, ” अस्मिता थिएटर ग्रुप के शशांक वर्मा कहते हैं कि लड़के कैसे दुनिया को महिलाओं के लिए एक बेहतर जगह बनाने की जिम्मेदारी रखते हैं।
ज़्यदातर यह देखा जाता है कि चाहे महिलाएं हों या पुरुष, दोनों को ही अपनी पेशेवर ज़िंदगी में स्वयं को पूर्ण तरह से अभिव्यक्त करने के मौके कम मिलते हैं। हर दिन ऐसा लगता है मानो उसमे कोई नयी ऊर्जा है ही नहीं। वही एक जैसा काम ज्यादातर लोग रोज - रोज करके घर वापस चले जाते हैं।लेकिन अगर महिलाएं इस समान स्तिथि में खुद को नहीं रखना चाहतीं, तो ऐसे कुछ पेशे और व्यवसाय हैं जिनमे में स्वयं की रूचि और प्रतिभा को माप सकतीं हैं।
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