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Sanatan Dharma Human Development Research & Training Center

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Presentation on theme: "Sanatan Dharma Human Development Research & Training Center"— Presentation transcript:

1 Sanatan Dharma Human Development Research & Training Center
(An undertaking of Sanatan Dharma College (Lahore), Ambala Cantt.) In Academic Collaborations with Department of Sanskrit & Pali, Punjabi University, Patiala, Department of Sanskrit, Pali & Prakrit, Guru Nanak Dev University, Amritsar Council for Historical Research & Comparative Studies, Panchkula. Darshan Yoga Sansthaan, DakshinaMurti Bhavan, Dalhousie (HP) (Under the VedaVyaasa Restructuring Sanskrit Scheme) One Day interdisciplinary National Seminar cum panel discussion CRITIQUE OF HISTORY, PHILOSOPHY, PRACTICES & LITERATURE OF BAIRAGI SECT (PART-1) बैरागी सम्प्रदाय के इतिहास, दर्शन, प्रथाओं एवम् साहित्य की मीमांसा (भाग-१) Academic Support by - Departments of Sanskrit, History, Hindi, Punjabi, Music (I & V), Mass Communication, Central library, Date – 28 October, 2017, Saturday, Time a.m. A portrait of Bhajan Das Bairagi, a member of the Vaisnava – British Library 

2 PROGRAMME DETAILS 9.30 a.m. – Stage secretary - Dr. Uma Sharma, . 9.35 a.m. – Idea of the seminar cum panel discussion by Ashutosh Angiras 9.45. –1st Speaker – Dr Raj Singh Vaishnav, Registrar of Companies (Pb, Hr, Hp, Chd), & Directly belongs to Bairagi tradition of Banda Bairagi nd Speaker - Prof. Ramakant Angiras, Former Chairperson, Department of Sanskrit & Professor of Kalidas Chair, Punjab University, Chandigarh. rd Speaker – Sh. Neeraj Atri, Director, Council of Historical Research & Comparative Studies, Punchkula 11.45 – Book Release of Dr Naresh Batra by Dr Virender Chauhan, Vice President, HGA, PKL 12.30 Paper presentations – Stage Secretary - Dr. Virender Kumar, Head, Department of Sanskrit, Punjabi University, Patiala. Chairperson - Prof. (Dr.) Dalbir Singh, Chairman, Dept, of Sanskrit, G N D University, Amritsar Guest of Honour – Dr. U. V. Singh, Former head, Department of History, S D College, A/Cantt, Paper Presentations – 1, 2, 3, Concluding comments/ observations by participants 2. 00 p.m. – Presidential remarks 2.20. Vote of thanx by Dr. Desh Bandhu, Vice President, SDC management Committee, Ambala Cantt. 2.30. Lunch

3 राम का वैराग्य (योगवासिष्ठ)
बौद्धिक (ब्रह्म सत्यं जगन्मिथ्या) भावनात्मक (श्मशान वैराग्य) वैराग्य यज्ञ भर्तृहरि का वैराग्यशतकम् पुरुषार्थ (धर्म ,अर्थ, काम, मोक्ष) आश्रम (ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ, संन्यास) वेद योग क्षेम

4 बैरागी शब्दावली मठ ५२ द्वारा वैष्णव आचार्य अखाडा महन्त प्रथाएं योगदान परम्परा इतिहास अभीष्ट देवता कला धार्मिक ग्रन्थ

5

6 वैष्णव सम्प्रदाय, भगवान विष्णु को ईश्वर मानने वालों का सम्प्रदाय है.
वैष्णव धर्म या वैष्णव सम्प्रदाय का प्राचीन नाम भागवत धर्म या पांचरात्र मत है. इस सम्प्रदाय के प्रधान उपास्य देव वासुदेव हैं, जिन्‍हें, ज्ञान, शक्ति, बल, वीर्य, ऐश्वर्य और तेज- इन 6: गुणों से सम्पन्न होने के कारण भगवान या 'भगवत' कहा गया है और भगवत के उपासक भागवत कहलाते हैं. वैष्णव के बहुत से उप संप्रदाय हैं. जैसे: बैरागी, दास, रामानंद, वल्लभ, निम्बार्क, माध्व, राधावल्लभ, सखी और गौड़ीय. वैष्णव का मूलरूप आदित्य या सूर्य देव की आराधना में मिलता है. स्वामी रामानन्दाचार्य द्वारा विरचित पुस्तकों की सूची इस प्रकार है: (1) वैष्णवमताब्ज भास्कर: (संस्कृत), (2) श्रीरामार्चनपद्धतिः (संस्कृत), (3) रामरक्षास्तोत्र (हिन्दी), (4) सिद्धान्तपटल (हिन्दी), (5) ज्ञानलीला (हिन्दी), (6) ज्ञानतिलक (हिन्दी), (7) योगचिन्तामणि (हिन्दी) (7) सतनामी पन्थ (हिन्दी) 'आनन्दभाष्य' नाम से जगदगुरु रामानन्दाचार्य जी ने प्रस्थानत्रयी का भाष्य लिखा है।

7 राग बैरागी स्वर गंधार और धैवत वर्ज्य। रिषभ और निषाद कोमल। शेष शुद्ध स्वर। जाति औढव – औढव थाट भैरव वादी/संवादी मध्यम/षड्ज समय दिन का प्रथम प्रहर विश्रांति स्थान सा; रे१; म; प; मुख्य अंग म प नि१ प म रे१ ; रे१ प म रे१ सा ; ,नि१ सा रे१ सा ; आरोह-अवरोहसा रे१ म प नि१ सा' - सा' नि१ प म रे१ सा ; विशेष - राग बैरागी को पंडित रवि शंकर जी ने प्रचलित किया है। यह बहुत ही कर्णप्रिय राग है और भक्ति रस से परिपूर्ण है। इस राग में किसी भी तरह का बन्धन नही है, इसलिये यह तीनों सप्तकों में उन्मुक्त रूप से गाया जा सकता है। यह राग भैरव थाट के अंतर्गत आता है। यह स्वर संगतियाँ राग बैरागी का रूप दर्शाती हैं - ,नि१ सा रे१ म प नि१ ; म नि१ प ; नि१ प म प म रे१ ; ,नि१ सा ; रे१ म प नि१ प ; म प नि१ नि१ सा' ; नि१ प नि१ सा' रे१' सा' ; रे१' सा' नि१ रे१' सा' नि१ प म ; प म रे१ सा ; ,नि१ सा रे१ सा ; बैरागी तोडी थाट:  तोड़ी राग बैरागी तोडी को पंडित रवि शंकर जी ने प्रचलित किया है। गाने में कठिन लेकिन मधुर है। राग बैरागी के मध्यम की जगह कोमल गंधार लेने से राग बैरागी तोड़ी अस्तित्व में आता है। यह राग तोड़ी थाट के अंतर्गत आता है। इसका चलन राग तोडी के समान है इसलिये इसमें गंधार अति कोमल लिया जाता है। इस राग की प्रकृति गंभीर है और इसका विस्तार तीनों सप्तकों में किया जा सकता है। यह स्वर संगतियाँ राग बैरागी तोडी का रूप दर्शाती हैं - सा रे१ ग१ ; ग१ रे१ सा ; रे१ ग१ प ; रे१ ग१ रे१ सा ; सा रे१ ग१ प ; नि१ प ग१ रे१ ; ग१ प नि१ सा' ; नि१ सा' रे१' सा' ; सा' नि१ प ; नि१ प ग१ रे१ ; ग१ रे१ सा ; ,नि१ सा ,प ,नि१ सा ; रे१ सा ;


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